खापों का प्रचलन उत्तर भारत में लंबे समय से रहा है। लोगों के छोटे-मोटे आपसी विवाद   निपटाने के लिए ग्राम समूह का अस्तित्व किसी से छिपा नहीं है। खाप पंचायतों का   ढांचा लगभग 1350 साल से भी पुराना है। जनतांत्रिक प्रणाली को आधार मानकर 643 ई. में   महाराजा हर्षवर्धन ने अपने शासनकाल में सर्वखाप पंचायत की स्थापना की थी। लेकिन   इससे पहले भी आदि काल से ही पंचायतें समाज विकास के लिए किसी न किसी रूप में चली आ   रही हैं। खाप पंचायतों ने अपने असल स्वरूप में कभी कोई स्थाई नेतृत्व धारण नहीं   किया। यह तो वर्तमान में ही पनपा एक नया रोग है। खाप पंचायतों में नेतृत्व या किसी   पद के लिए कोई चुनाव नहीं होता। रोजमर्रा के विवादों को निपटाने में अपनी क्षमता व   प्रतिभाओं के बुते कुछ गणमान्य लोग समाज में उभर कर आते थे, जिनकी उपस्थिति विवाद   निपटाने में जरुरी होती थी और ये लोग भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर संबंधित पार्टी के   द्वारा पर ही मुफ्त में उसके विवाद का निपटारा कर देते हैं। जिससे लोगों का पुलिस   थाने, कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने से वक्त जाया होने से बच जाता है। निष्पक्ष एवं   सर्व मान्य ढंग से विवादों का निपटारा करने में ही इनकी ताकत निहित थी, जो आज भी   जारी है। 
लेकिन समय के साथ-साथ पूरे समाज का आवागमन खराब हो गया है तो खाप पंचायतें   भी इससे अछूती नहीं रही हैं। पंचायत में निष्पक्ष व सर्वमान्य फैसले न दे पाने के   कारण मौजूदा समय की दागी दुनिया में बहुत सारे खाप प्रतिनिधियों के कपड़े भी दागी   हुई हैं, लेकिन बीजमारी किसी की नहीं होती है। इसलिए अब भी बहुत सारे ऐसे गणमान्य   लोग पंचायतों में मौजूद हैं जो प्रचार-प्रसार से दूर रहकर निष्काम भाव से लोगों के   झगड़े निपटाकर देश की कोर्ट-कचहरियों का भार कम करते हैं। खाप पंचायत में सुलभ,   सस्ता व जल्दी न्याय मिल जाता है, जबकि कोर्ट कचहरियों में समय व पैसे की बर्बादी   के बाद भी न्याय मिलने की उम्मीद काफी कम है। 
ग्रामीण स्तर पर विवादों का निपटारा   करते समय ग्राम पंचायत सबसे छोटी इकाई होती है। यदि कोई विवाद दो या दो से अधिक   गांवों में उलझ जाता है और उस पर विचार-विमर्श करके निर्णय लेना हो तो उन गांवों के   समूह पर गठित तपा, बारहा व पाल से संबंधित पंचायतों को बुलाया जाता है। यदि विवाद   दो तपों, बाहरों या पालों में हो जाए तो उसे निपटाने के लिलए सर्वखाप मंचायत बुलाई   जाती है। पंचायतों के अलग-अलग समूह होते हैं जैसे चैगामा, अठगामा, बारहा, चैबीसी,   सतरोल, चैरासी, 360 आदी। चार गांव के समूह को चैगामा, आठ गांवों के समूह को अठगामा,   इसी प्रकार 70 गांवों के समूह को सतरोल, 84 गांवों के समूह को चैरासी व 360 गांवों   के समूह को 360 कहा जाता है। 36 बिरादरी की पंचायत में सभी गांवों के 36 बिरादरी के   लोग भाग लेते हैं तथा इसे महापंचायत के नाम से भी पुकारा जाता है। 
पंचायतों का   दूसरा स्वरूप गोत्र के आधार पर है। गोत्र के आधार पर गठित खाप पंचायतों का भी अपना   विशेष महत्व रहा है जैसे बाल्याण खाप, दहिया खाप, अहलावात, मलिक उर्फ गठवाला खाप,   दलाल, सांगवान, कुंडू, श्योराण, हुड्डा, कादियान, नैन, ढांडा, राठी, मान तथा खत्री   आदि गोत्र के नामों पर भी खाप बनी हुई हैं। 
बाल्याण खाप को सभी खापों का प्रधान   माना जाता है। इस प्राकर की गोत्र पंचायतों में ज्यादातर मसले विवाह संबंधि विवादों   के समाधान के लिए ही आते रहे हैं। जिसका समाधान भी सामाजिक परिस्थितियों में होता   चला आ रहा है। आपसी भाईचारे के आधार पर या गोत्र के आधार पर बने गांवों के समूह को   ग्रामीण इलाकों में तपा, बारहा, पाल या खाप के नाम से पुकारा जाता है। उत्तर भारत   की पंचायतें बड़े-बड़े विवादों को निपटाने तथा अपने निष्पक्ष व सर्वमान्य फैसले   सुनाने के लिए मसहूर हैं। खाप के इतिहास को देखते हुए सुलभ, सस्ता व जल्दी न्याय के   लिए तो उत्तर भारत की पंचायतों को ओल्ड इज गोल्ड भी कहा जाता है।  
        
        
सर्वखाप व पंचायत का अर्थ व उद्देश्य: सर्व का अर्थ है व्यापक या सर्वत्र। खाप ख$आप   अर्थात खाप, ख का अर्थ है आकाश या व्यापक और आप का अर्थ है जल, पवित्र या शांतिदायक   पदार्थ। पंचायत पांच या उससे अधिक निष्पक्ष, सत्यवादी, व्यवहारिक, न्यायप्रिय और   समस्या से परिचित व्यक्तियों के समूह को पंचायत कहते हैं। वास्तव में पंचायत का   अर्थ है पंच+आयत अर्थात पांचों से बनी आयत अथवा पंचायत। यदि हम दृष्टि डालें तो   सृष्टि की रचना भी पांच महाभूतों से ही हुई है। भारतीय संस्कृति अथवा किसी भी धर्म   की और दृष्टिडालने पर भी पांच शब्द का महत्वपूर्ण प्रयोग मिलता है। जैसे हरियाणा   में हुक्के को पंच प्याला कहा जाता है। सिक्खों में पंच प्यारे आर्य समाज में पंच   महायज्ञ, भारतीय शास्त्रवेताओं ने अपने वार्षिक कलैंडर को पंचाग का नाम दिया है   आदि। धार्मिक कथाओं, अध्यात्मिक एवं राजनैतिक सभी क्षेत्रों में पांच शब्द को   पर्याप्त महत्व दिया गया है। यही मूल कारण है कि इस संस्था को पंचायत कहा जाता है।   इसलिए जो संगठन आकाश की भांति व्यापक, जल की भांति निर्मल तथा शांतिदायक हो तथा   भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर निष्पक्ष व सर्वमान्य फैसला सुना कर विवाद को सुलझाए उसे   पंचायत कहा जाता है। 
       
पंचायत की कार्यप्रणाली:
        खाप पंचायत लोकतांत्रितक आधार पर गठित की जाती   हैं। जिस पर पंचायत की कार्यप्रणाली टिकी हुई है। आपसी भाईचारे को कायम रखने के लिए   खापों के जरिए अपासी झगड़ों को बिना थाने, कोर्ट-कचहरी के हस्तक्षेप के किया जाता   है। खाप पंचायतें सामाजिक ताने-बाने को कायम रखने में काफी कारगर साबित हो रही हैं।   पंचायत में सुझाव देने व अपनी बात कहने की पूरी छूट होती है। इसी वजह से फैसलों को   सर्वमान्यता मिलती है। पीड़ित को खाप पंचायत के मुखिया के पास जाकर जानकारी या अपनी   शिकायत देनी होती है। इसके बाद मुखिया प्रभावशाली व्यक्तियों की सलाह लेकर योग्य   पंचांे का चयन करता है।  
        
 पंचायत द्वारा सुलझाए गए विवादों में से कुछेक:
        
          - गांव ढड़बा कलां जिला सिरसा में किसी मामूली बात को लेकर सन 1934 में कत्ल हुआ   था। जिस कारण दोनों पक्षों के 55 व्यक्तियों के कत्ल हुए थे। इस मसले को बैनिवाल   खाप ने 63 साल बाद यानि 1997 में दोनों पक्षों में भाईचारा बनाकर समझौता करवाया। 
          -  गांव थाना कलां जिला सोनीपत में भी दो पक्षों में 16-17 कत्ल हो चुके थे। जिनका सर्वखाप पंचायत ने दोनों पक्षों में भाईचारा बनवाकर समझौता करवाया। 
          -  गांव गौसाई खेड़ा जिला जींद में भी दो पक्षों के बीच दुश्मनी के कारण 7 व्यक्तियों के कत्ल हुए थे। 1962-63 में सर्वखाप पंचायत ने दोनों पक्षों का समझौता करवाया। जिसमें पूर्व मंत्री लहरी सिंह का विशेष योगदान रहा। 
          -  सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए गांव सिसाना में सन 1960 मंे दहिया खाप   द्वारा सर्वखाप पंचायत तथा 1962 में विवाह-शादियों में होने वाली फिजूल खर्ची को   रोकने के लिए बेरी मंे सर्वखाप पंचायत बुलाई गई। इन पंचायतों में विवाह-शादियों में   होने वाली फिजूलखर्ची पर रोक लगाकर लोगों को लुटने से बचाया गया। 
          -  1993 में दहिया खाप द्वारा फिर सर्वखाप पंचायत बुलाई गई। इस सर्वखाप पंचायत   में शराब का प्रचलन बंद करवाने का अह्वान किया गया था। 
          -  जींद जिले के बीबीपुर गांव में 14 जुलाई 2012 को हुई सर्व जातीय सर्व खाप   महापंचायत ने कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीति को जड़ से उखाड़ने के लिए अहम   फैसला लिया। महापंचायत में चैधरियों ने सरकार से कानून में संसोधन कर कन्या भ्रूण   हत्यारों के खिलाफ 302 का मुकदमा दर्ज करने की मांग की। सर्व खाप पंचायत द्वारा   शुरू की गई इस पहल के बाद गांव में लक्ष्मी का प्रवेश हुआ और प्रदेश के मुख्यमंत्री   भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीबीपुर गांव को एक करोड़ की ग्रांट देने की घोषणा। इससे यह   सिद्ध होता है कि पंचायत जिस भी काम को हाथ में लेती हैं उसे सिरे चढ़ाकर ही दम लेती   हैं। 
          -  बाल्याण खाप के प्रधान स्व. चै. महेंद्र सिंह टिकैत तथा पूर्व मंत्री स्व. चै.   कबूल सिंह द्वारा सौरम गांव (यूपी) में 2010 में गौत्र विवाद विषय पर एक महापंचायत   का आयोजन किया गया। इस महापंचायत में सरकार से हिंदू मैरिज एक्ट में संसोधन की मांग   करते हुए एक ही गांव व एक ही गौत्र में विवाह पर रोक लगाने की मांग की गई। 
          -  जींद जिले के ही निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला के कीट मित्र किसानों   द्वारा 40 वर्षों से चले आ रहे किसानों व कीटों के विवाद को सुलझाने के लिए खाप   पंचायतों से आह्वान किया। किसानों के आह्वान पर खाप पंचायत ने इस चुनौती भरे मसले   को स्वीकार किया और 26 जून 2012 से निडाना के खेतों में पहली पंचायत का आयोजन किया।   इसका फैसला अभी भविष्य के गर्भ में है। खाप प्रतिनिधि हर मंगलवार को पाठशाला में   पहुंचकर खेतों में बैठकर पौधों व कीटों की भाषा सीख रहे हैं। जिसके बाद लगातार 18   पंचायतों के गहन मंथन के बाद 19 वीं पंचायत में अपना फैसला सुनाएंगे। इनके अलावा भी   खाप पंचायतों ने और भी बहुत से छोटे व बड़े झगड़े निपटाए हैं। 
पंचायतों में नहीं बिकते गवाह:
       1925 में रोहतक के तत्कालीन डीसी ने रहबरे आजम   दीनबंधु चों. छोटू राप से खाप पंचायतों व कोर्ट-कचहरी में क्या फर्क या अंतर है के   अंतर के बारे में पूछा गया था। जिस पर चों. छोटू राम ने उतर दिया था कि सरकारी   कचहरियों में झूठ का बोलबाला होता है। गवाह बदल जाते हैं, टूट जाते हैं, तोड़े जाते   हैं और एक निष्पक्ष, ईमानदार व स्वच्छ जज के लिए भी ये जानना कठिन हो जाता है कि सच   क्या है? जबकि खाप पंचायतों में झूठ नहीं बोला जाता और न ही गवाह टूटते या बिकते   हैं। खाप पंचायतों में झगड़े की गहराई तक जा कर सर्वमान्य व निष्पक्ष फैसला सुनाया   जाता है। 
       
खापें नहीं होती तो अनपढ़ रह जाते हरियाणा के लोग:  हरियाणा में अगर खापों का प्रभुत्व नहीं होता तो   आज हरियाणा के अधिकतर लोग या तो अनपढ़ होते या फिर उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए   दूसरे प्रदेशों का रूख करना पड़ता। वर्ष 1911 में दहिया खाप ने बरोणा में सर्वखाप   महापंचायत बुलाई थी और रोहतक का जाट स्कूल, मटिंडू, भैंसवाल, और खानपुर गुरुकुल उसी   महापंचायत की देन हैं। 
      
1857 की जनक्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजों ने खाप   पंचायतों पर लगा दिया था प्रतिबंध: सन 1857 में सम्राट बहादुरशाह जफर ने सर्वखाप से   सहयोग मांगाा और अपना राज सर्वखाप पंचायत को सौंपने का ऐलान किया। लेकिन 1857 की   जनक्रांति की विफलता के बाद अंग्रेजी शासकों ने इन खाप पंचायतों को दबाने में कोई   कोर-कसर नहीं छोड़ी और खाप पंचायतों पर प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन खाप पंचायतों ने उस   दौरान भी अपने अस्तित्व को कायम रखा। लेकिन आजादी के बाद सन 1950 में पहली सर्वखाप   पंचायत गांव सौरम जिला मुजफ्फरनगर (उत्तरप्रदेश) में हुई। इसके बाद 1956 में भी   यहीं एक सर्व खाप पंचायत हुई। जिसके बाद सौरम गांव सर्वखाप पंचायत का मुख्यालय बना   गया।  
          
  
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   मीडिया ने नहीं छोड़ी खापों को बदनाम करने में कोई   कसर: खाप पंचायतों को बदनाम करने में मीडिया ने कोई   कोर-कसर नहीं छोड़ी है| मीडिया ने खाप पंचायतों को समाज के सामने तालिबानी और फतवे   जारी करने वाली एक संस्था के तौर पर प्रकट किया है। गौत्र विवाह व आनर किलिंग के   मामलों में पंचायत की छवी को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। जबकि वास्तविकता कुछ और   ही है। सर्व जातीय सर्वखाप महापंचायत के संचालक व बराह कलां बारहा के प्रधान कुलदीप   ढांडा का कहना है कि खाप पंचायतें एक गौत्र व एक गांव में विवाह का विरोध करती हैं   और एक ही खून में शादी करने के मामले को वैज्ञानिक भी गलत मानते हैं। क्यों कि इससे   आने वाली पीढ़ियों में कुछ अवगुण भी आने का खतरा बनता हैं। खाप पंचायतों ने कभी भी   किसी को मौत की सजा नहीं सुनाई है और न ही कोई फतवा जारी किया है। खाप पंचायतें   प्रेम विवाह का विरोध नहीं करती, लेकिन एक गौत्र व एक गांव में विवाह करने का विरोध   करती हैं। खाप पंचायतें भाईचारे को कायम करने तथा सामाजिक तानेबाने को कायम रखने का   काम करती हैं। एक गौत्र व एक गांव में विवाह करने के मसले को मिटाने के लिए खाप   पंचायत ने 10 जून 2010 को मुख्यमंत्री हरियाणा व 25 जून 2010 को यूपीए की अध्यक्षा   सोनिया गांधी को पत्र लिखकर हिंदू मैरिज एक्ट में संधोसन कर इस पर पूर्ण रूप से   प्रतिबंध लगाने की मांग की है। पांडीचेरी, तमिलनाडू व उत्तरप्रदेश के लोगों ने भी   अपनी संस्कृति को बचाने के लिए सरकार से मांग कर अपने विवाह के नियमों परिवर्तन   करवाया है। |  | 
  
    | कुलदीप ढांडा, प्रधान बराह कलां बारहा खापएवं संचालक सर्व जातीय सर्व खाप पंचायत
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  महिलाओं व लड़कियों की सुरक्षा को देखते हुए लिया फैसला: बागपत (उत्तर प्रदेश) में महिलाओं के लिए जो   फैसला सुनाया गया है वह किसी खाप पंचायत ने नहीं सुनाया। यह फैसला वहीं के एक-दो   गांवों के समूह के लोगों ने सुनाया है। लेकिन उनके फैसले को मीडिया ने तोड़-मरोड़ के   जनता के सामने पेश किया है। उन्होंने यह पंचायत महिलाओं व लड़कियों की सुरक्षा को   देखते हुए बुलाई थी। जिसमें लड़कियों की सुरक्षा को  देखते हुए अकेली लड़कियों को   बाजार जाते वक्त घर की बुजुर्ग महिलाओं को साथ ले जाने की हिदायत दी गई है तथा   लड़कियों व लड़कों को मोबाइल पर खुले में गाने सुनने पर प्रतिबंध लगाया है। इसके   अलावा लड़कियों को साधारण पहनावे के लिए प्रेरित किया जा रहा है ताकि उतेजित पहनावे   के कारण लड़कियों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।  |  | 
  
    |  | राकेश टिकैत, प्रधानभारतीय   किसान यूनियन
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    | खाप पंचायत में मोजूद खाप प्रतिनिधि | खाप पंचायत में भाग लेती महिलाएं | खाप पंचायत में फोटो लेती एक छात्रा | 
  
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  पंचायत के सामने किसी चुनौती से कम नहीं है किसान व कीटों का विवाद: 
 लगभग पिछले चार दशकों से भी ज्यादा समय से चले आ   रहे किसान व कीटों के विवाद को देखते हुए कीट साक्षरता केंद्र निडाना से जुड़े 12 गांवों के किसानों ने खाप पंचायत से इस झगड़े को सुलझाने की गुहार लगाई है। इस विवाद   में एक पक्ष बोलने वाला तथा दूसरा पक्ष बेजुबान है। किसानों ने सर्व खाप पंचायत   हरियाणा के संयोजक कुलदीप ढांडा की मार्फत खाप पंचायत को चिट्ठी लिखी। खाप पंचायत   ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इस विवाद को निपटाने का जिम्मा अपने कंधों पर   उठाया। इस मामले में सबसे खास बात यह है कि पंचायत को इस विवाद को निपटाने के लिए   12 ग्रामी पाठशाला में पहुंचकर खेतों में बैठकर कीटों व पौधों की भाषा व इनके कार्य   समझने पड़ रहे हैं। जबकि आज तक इससे पहले पंचायत प्रतिनिधियों को ऐसा करने की जरुरत   नहीं पड़ी थी। इस मामले को निपटाने के लिए हर मंगलवार को एक पंचायत का आयोजन किया   जाता है। 18 पंचायतो के बाद 19वीं सर्व जातीय सर्व खाप महापंचायत में सर्व खाप   प्रतिनिधि अपना फैसला सुनाएंगे। यह फैसला एक ऐतिहासिक होगा। इस पंचायत की सबसे खास   बात यह है कि इसमें मनुष्यों की खाप की तरह कीटों की खाप भी है और हर बार कीटों के   अलग-अलग खाप प्रतिनिधि पंचायत में पहुंच रहे हैं।
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    | खाप पंचायत में हाथ उठा कर कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में हाथ उठा कर संकल्प प्रतिनिधि |