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!!!......गंभीरतापूर्वक व् सौहार्दपूर्ण तरीके से अपनी राय रखना - बनाना, दूसरों की राय सुनना - बनने देना, दो विचारों के बीच के अंतर को सम्मान देना, असमान विचारों के अंतर भरना ही एक सच्ची हरियाणवी चौपाल की परिभाषा होती आई|......!!!
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विकृत आधुनिकता
विकृत आधुनिकता
क्या दोहरी मानसिकता कभी पीछा छोड़ेगी इस समाज का? - व्यंगात्मकता बनाम गंभीरता

जिस देश में साधुओं ने 'काम-सूत्र' की रचना की हो, जहाँ मंदिरों में देवी देवताओं की कामोतेज्जक आकृतियाँ हों, उस समाज के मानस को कोई फिल्म, विज्ञापन या टीवी शो कैसे कलुषित कर सकता है, ये मेरी समझ से परे की बात है। हर युग में और हर समाज में अच्छे-बुरे सभी उदाहरण रहे हैं, कौन किस से प्रेरित होकर क्या करता है इसकी विवेचना आसान नहीं है।

लगभग एक ही वक़्त दो बच्चों को उनके बुजुर्गों ने राजा हरिश्चन्द्र की कथा सुनाई। एक बच्चा उससे प्रेरित होकर महात्मा गाँधी बन गया और दूसरा भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहेब फाल्के। अब रामायण पढ़के कोई रावण या कुम्भकरण से प्रेरित हो जाये तो उसका दोष वाल्मीकि पर तो नहीं मढ़ा जा सकता ना?

कभी खापों को ऐसी सोच रखने के लिए अपनी सुविधा अनुसार तालिबानी बताने वाले बुद्धिजीवी और समाज में आधुनिकता के स्वयं-घोषित ठेकेदार ही आज टी.वि. प्रोग्राम और डिबेट्स में बढ़ते नारी अपराधों के पीछे मीडिया की नंगेपन और अश्लीलता को ले एड-गुरु प्रहलाद कक्कड़ तक को घेरते नजर आ रहे हैं| अरे ऐसा करते वक़्त इतना तो सोचते कि तुम उसी ढर्रे पे जा के बातें कर रहे हो जिसके लिए तुम खापों को कोसते रहते हो|

अब या तो खापें इतनी अगाड़ी सोच की हैं कि वो इन खतरों को पहले से भांप (कम से कम मीडिया के बद्धेपन और अश्लीलता पर समय-समय पर उनके द्वारा दर्ज कराती गई आपत्तियां) के समाज को सचेत करने के लिए तथाकथित कहे जाने वाले तालिबानी फरमान (जिनमें से कुछ-एक पर मुझे भी कई बार आपत्ति होती है) जारी करते रहते हैं जिनका ख्याल कि इन तथाकथित आधुनिक और बुद्धजीवियों को तब आया जब दामिनी के साथ दिल्ली की चलती बस में अमानवता और हैवानियत की सारी सीमायें पार हो गई या फिर ये आधुनिक कहे जाने वालों के साथ वो कहानी बनी है कि "जिसको लागे वही जाने"| यहाँ मैं यह भी कह दूं कि यह जरूरी नहीं कि हम किसी के विचारों से शत-प्रतिशत सहमत हों लेकिन किसी से वैचारिक असहमति का इतना बध्धा ड्रामा भी नहीं होना चाहिए कि अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने हेतु उनको तालिबानी ही करार दे दिया जाए।

इस घटना से शुक्र है कि आधुनिकता को इस बात की परिभाषा समझ में आ गई कि अच्छाई और बुराई में क्या अंतर होता है| वरना कुछ समय से तो ऐसा महसूस होने लग गया था कि समाज में अच्छा-बुरा कुछ है ही नहीं और आधुनिकता और open mindedness का बहाना बना जिसको जो चाहे वो करे| फिर वो चाहे शहर में एक लड़की को देख उसको piece, what a hot chick yaar, babe, damn cute etc. कहने वाला confused-modern हो या फिर गाँव- कस्बों की गलियों में उसी लड़की को कट्टो-पटाखा-माल-बिजली कहके फब्तियाँ कसने वाला आचरण रहित मनचला|

और इस घटना से शायद आधुनिक समाज को इतनी समझ में आ गई है कि अंतत: उन्हें इतनी सवेंदंशीलता की दरकार महसूस हुई अन्यथा कोई हनी सिंह के गानों पे थिरकने को भी अच्छे वाली आधुनिकता समझ बैठा था? मुझे तो हैरत हुई यह जानकर कि आज के युग में हनी सिंह का नए साल पे गुड़गावां में होने वाला शो भी स्थगित हो सकता है| क्या यही हनी सिंह का शो कोई खाप बंद करवाती और दामिनी वाला केस ना हुआ होता तो यही आधुनिकता और मीडिया वालों को खापों को फिर से तालिबानी ठहराने का एक नया अध्याय ना मिल जाना था? वाह री मौकापरस्ती की सुविधानुसार (विकृत) आधुनिकता!

मैंने तो जब गुडगाँव के उसके कार्यक्रम के स्थगन की खबर पढ़ी तो उत्सुकता हुई कि youtube पे सर्च करके सुनूँ तो सही कि ऐसा क्या आपत्तिजनक है उसके गानों में जिससे कि उसका कार्यक्रम ही स्थगित करवा दिया गया| और वाकई में जब उसके गाने सुने तो मुझे तो भारत के सेंसर बोर्ड या इसके समकक्ष कानूनी संस्था (जो मीडिया से सम्बन्धित चीजों के प्रसारण और बिक्री को मंजूरी देती है) के लोगों की मानसिकता पर तरस आया| हनी सिंह ने अपने गानों में एक भाषा का घटिया से घटिया इस्तेमाल कैसे (यहाँ पंजाबी भाषा में उसके गाने हैं) किया जा सकता है उसकी सारी सीमायें उसके गानों में लांघ रखी हैं| पता नहीं किसी सिख या सामाजिक संगठन ने इसका विरोध किया था या नहीं?

जब तक सामान खुद को नुक्सान पहुंचाएं बिना बिकता रहा तब तक सब ढोल बजाते रहे आधुनिकता का और जब उसी आधुनिकता ने इनको काल बनाया तो उन्हीं एड गुरुवों को जा घेरा| बेचारे प्रहलाद कक्कड़ भी आज तक यही सोचते रहे होंगे कि मेरे से आधुनिक नजरिया समाज को देने वाला कोई नहीं होगा पर आज उनको समझ आ रही होगी कि वो बुगले की तरह अंदर से काले और बाहर से उजले समाज में आधुनिकता का प्रतिनिधित्व कर रहे थे| एक उस समाज की आधुनिकता का कि जिसमें जब बेशर्मी की हद हो गई तो वो ही छात्र उनको टी. वी. पर घेरते नजर आये जिनको कि पढ़ा के वो कभी आधुनिक बना चुके होंगे| लेकिन बुगले को हंस बनाने के लिए सिर्फ सियार की तरह उसका चोला बदल देना काफी नहीं होता, उसका चरित्र भी परिवर्तित करना पड़ता है| ऐसी आधुनिकता से तौबा जिसकी नींव इतनी कमजोर हो|

और शायद किसी को बुराई करने पर गाँव से निकाला देने या समाज से निष्काषित करने या किसी रेजीदेंसियल वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) से किसी का लोटा-बिस्तरा बाहर फेंकानें का महत्व भी यह घटना आज के युवा और गिद्धों की तरह दूसरों की विचारधाराओं को नोंच के खाने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों को अच्छे से समझा गई होगी|


विकृत आधुनिकता की मानसिकता के ध्वज-वाहक: साथ ही यह भी चर्चे उठाये जाने लगे हैं कि अपराधी की उम्र 18 से घटा 16 साल करने की बात की जा रही है तो फिर जब 16 साल वाले को इतना परिपक्कव मान लिया जा रहा है कि वो बलात्कार करने पर परिपक्कव स्वीकार किया जाए और इसके लिए दिल्ली के राज्यपाल तजेन्द्र खन्ना तो U.S.A. और U.K. का हवाला भी दे रहे हैं, तो फिर उसी बलात्कारी को शादी की उम्र में भी छूट क्यों ना दे दी जाए, वो भी घटा के 18 से 16 कर दी जाए? क्योंकि उन्हीं U.S.A. और U.K. में शादी की उम्र भी तो 16 है? या तो उस 16 से 18 के बीच वाले को शादी का भी कानूनी अधिकार दो या फिर उसको हर मामले में ही 18 से नीचे नाबालिग रहने दो| और U.S.A. और U.K. में 16 से 18 के बीच वाले को अपराधी इसलिए माना जाता है क्योंकि वहाँ के कानून के अनुसार उसको सिर्फ अपराध ही नहीं बल्कि शादी-सामाजिक-आर्थिक-नैतिक हर दृष्टि से परिपक्कव माना गया है| पता नहीं हम भारतीय इस पश्चिमी सभ्यता को अपनी सुविधा अनुसार ढाल कब तक विकृत आधुनिकता की मानसिकता का चोला ओढ़े चलते रहेंगे| वाह रे भारत की आधुनिकता के ध्वजवाहको, मतलब यह हुआ कि अब भारत में किसी को 16 से 18 साल के बीच, अपना बालिगपन और मानवीय परिपक्कवता सिद्ध करने के लिए अपराध करने पड़ा करेंगे|

काश कोई आमिर खान आ के तजेंद्र खन्ना को भी समझाये कि हम भारत में रहते हैं, U.S.A. या U.K. में नहीं| यहाँ मैं यह भी कह दूं कि व्यक्तिगत स्तर पर तो मैं 25 साल की उम्र को शादी की सही उम्र मानता हूँ| पर मुझे हैरत तो इस बात पर हो रही है कि कुछ समय पहले एक सामाजिक संगठन के व्यक्ति के शादी की उम्र को घटा 16 साल करने के सुझाव पर जिन विकृत आधुनिकों ने इतना हो-हल्ला किया था कहाँ हैं अब वो सब?

जरूरत दोनों यानी शहरी और ग्रामीण परिवेश में समन्वय बैठाने की भी है| अन्यथा भारत के अंदर अन्य साम्प्रदायिक मुद्दों के साथ-साथ शहरी बनाम ग्रामीण का मुद्दा भी सुरसा की तरह मुंह फाड़ता ही जा रहा है|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


लेखक: पी. के. मलिक

प्रथम संस्करण: 02/01/2013

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

उद्धरण:
  • नि. हा. सलाहकार मंडल

साझा-कीजिये
 
इ-चौपाल के अंतर्गत मंथित विषय सूची
निडाना हाइट्स के इ-चौपाल परिभाग के अंतर्गत आज तक के प्रकाशित विषय/मुद्दे| प्रकाशन वर्णमाला क्रम में सूचीबद्ध किये गए हैं:

इ-चौपाल:


हरियाणवी में लेख:
  1. त्यजणा-संजोणा
  2. बलात्कार अर ख्यन्डदा समाज
  3. हरियाणवी चुटकुले

Articles in English:
    General Discussions:

    1. Farmer's Balancesheet
    2. Original Haryana
    3. Property Distribution
    4. Woman as Commodity
    5. Farmer & Civil Honor
    6. Gender Ratio
    7. Muzaffarnagar Riots
    Response:

    1. Shakti Vahini vs. Khap
    2. Listen Akhtar Saheb

हिंदी में लेख:
    विषय-साधारण:

    1. वंचित किसान
    2. बेबस दुल्हन
    3. हरियाणा दिशा और दशा
    4. आर्य समाज के बाद
    5. विकृत आधुनिकता
    6. बदनाम होता हरियाणा
    7. पशोपेश किसान
    8. 15 अगस्त पर
    9. जेंडर-इक्वलिटी
    10. बोलना ले सीख से आगे
    खाप स्मृति:

    1. खाप इतिहास
    2. हरयाणे के योद्धेय
    3. सर्वजातीय तंत्र खाप
    4. खाप सोशल इन्जिनीरिंग
    5. धारा 302 किसके खिलाफ?
    6. खापों की न्यायिक विरासत
    7. खाप बनाम मीडिया
    हरियाणा योद्धेय:

    1. हरयाणे के योद्धेय
    2. दादावीर गोकुला जी महाराज
    3. दादावीर भूरा जी - निंघाईया जी महाराज
    4. दादावीर शाहमल जी महाराज
    5. दादीराणी भागीरथी देवी
    6. दादीराणी शमाकौर जी
    7. दादीराणी रामप्यारी देवी
    8. दादीराणी बृजबाला भंवरकौर जी
    9. दादावीर जोगराज जी महाराज
    10. दादावीर जाटवान जी महाराज
    11. आनेवाले
    मुखातिब:

    1. तालिबानी कौन?
    2. सुनिये चिदंबरम साहब
    3. प्रथम विश्वयुद्ध व् जाट

NH Case Studies:

  1. Farmer's Balancesheet
  2. Right to price of crope
  3. Property Distribution
  4. Gotra System
  5. Ethics Bridging
  6. Types of Social Panchayats
  7. खाप-खेत-कीट किसान पाठशाला
  8. Shakti Vahini vs. Khaps
  9. Marriage Anthropology
  10. Farmer & Civil Honor
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
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