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!!!......ईस्स बैबसैट पै जड़ै-किते भी "हरियाणा" अर्फ का ज्यक्र होया सै, ओ आज आळे हरियाणे की गेल-गेल द्यल्ली, प्यश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड अर उत्तरी राजस्थान की हेर दर्शावै सै| अक क्यूँ, अक न्यूँ पराणा अर न्यग्र हरियाणा इस साबती हेर नैं म्यला कें बण्या करदा, जिसके अक अंग्रेज्जाँ नैं सन्न १८५७ म्ह होए अज़ादी के ब्य्द्रोह पाछै ब्योपार अर राजनीति मंशाओं के चल्दे टुकड़े कर पड़ोसी रयास्तां म्ह म्यला दिए थे|......!!!
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आसुज्ज
 
दशहरे, रामलील्ला, सांझी-सुतारयां, गींड-खुळीया के खेल अर नए बाषण-भांडया का मिन्हा

'आसुज्ज'

"सांझी री, री मांगै दामण-चुंदड़ी"

Pronunciation: आसुज्ज/आसज्ज (Hariyanvi), अश्विन (Hindi), Aasujj/Ashwin (English)

बाबत: "साल के इस मिन्हे का हरियाणे (आज का हरियाणा, हरित-प्रदेश, दिल्ली अर उत्तरी राजस्थान) खात्तर के मतलब अर अहमियत हो सै"
आसुज्ज का मिन्हा, हरयाणा अर अनुष्ठान-संस्कार:


आसुज्ज हिन्दू कैलेंडर का सातमा मिन्हा हो सै| आसुज्ज के मिन्हे की हरयाणे की संस्क्रती अर लोक-जीवन गेल बड़ी अल्लहड़ मारदी मौज हो सै| इस मिन्हे म्ह हरियाणवी संस्कृति की छटा सातमें असमान चढ़ ज्या सै। गाळआँ-गाळआँ अल्ल्हड़ छाळ मारदा हो सै, घर-घर बणदी सुतारयाँ-रंगां की सांझी, गाम की गाळआँ म्ह सुवास्सणां के सांझी के गीत्तां की असमान चीरदी सुर-लहरी, गींड-खुळीया लाट्ठी गेल चाँद की भांदी-भांदी शीळक म्ह गाभरुँआँ की होंदी स्यरमेळी, गाम के गोरयां तैं गाभरूआँ की गींड नैं कब्जाण बाबत पड़दी खैडाँ के पेंचे, कुम्हारां की बासणा भरी रेहड़ीयां के पड़दे लारे, साँझी की ब्य्दाई आळी दसमी की रयात पराणे बाषण-भांड्या के गाळ म्ह फैंके जाण तैं ठेकर-ठेकर होई गाळ; किते रामलील्ला के मंच तै किते दशहरे के मेऴए, यें हों सें, कै कहो अक होया करदे एक असली हरियाणवी आसुज्ज के मिन्हे के लच्छण। अर इस मिन्हे की खेती नैं भी जोड़ ल्यो तो जाणू दादा खेड़ा सारी म्य्ठास इस-ए मिन्हे म्ह बरसाण नैं हो सै, अक क्यूँ गंडे की पोरियां म्ह म्य्ठास भी तै इस-ए मिन्हे म्ह चढ़दी जाया करै| बाड़ी के खेत भी धोळी चादर होडण की तैयारी बैय्ठा ले सें।


आस्सुज के तीज अर त्युहार:


सांझी का पर्व: सांझी सै हरयाणे के आस्सुज माह का सबतैं बड्डा दस द्य्नां ताहीं मनाण जाण आळआ त्युहार, जो अक ठीक न्यूं-ए मनाया जा सै ज्युकर बंगाल म्ह दुर्गा पूज्जा अर अवध म्ह दशहरा दस द्यना तान्हीं मनाया जांदा रह्या सै|

पराणे जमान्ने तें ब्याह के आठ द्य्न पाछै भाई बेबे नैं लेण जाया करदा अर दो द्य्न बेबे कै रुक-कें फेर बेबे नैं ले घर आ ज्याया करदा। इस ढाळ यू दसमें द्य्न बेबे सुसराड़ तैं पीहर आ ज्याया करदी। इसे सोण नैं मनावण ताहीं आस्सुज की मोस तैं ले अर दशमी ताहीं यू उल्लास-उत्साह-स्नेह का त्युहार मनाया जाया करदा।

आस्सुज की मोस तें-ए क्यूँ शरू हो सै सांझी का त्युहार: वो न्यूं अक इस द्य्न तैं एक तो श्राद (कनागत) खत्म हो ज्यां सें अर दूसरा ब्याह-वाण्या के बेड़े खुल ज्यां सें अर ब्याह-वाण्या मौसम फेर तैं शरू हो ज्या सै। इस ब्याह-वाण्या के मौसम के स्वागत ताहीं यू सांझी का दस द्य्न त्युहार मनाया जाया करदा/जा सै।

के हो सै सांझी का त्युहार: जै हिंदी के शब्दां म्ह कहूँ तो इसनें भींत पै बनाण जाण आळी न्य्रोळी रंगोली भी बोल सकें सैं| आस्सुज की मोस आंदे, कुंवारी भाण-बेटी सांझी घाल्या करदी। जिस खात्तर ख़ास किस्म के सामान अर तैयारी घणे द्य्न पहल्यां शरू हो ज्याया करदी।



सांझी नैं बनाण का सामान: आल्ली चिकणी माट्टी/ग्यारा, रंग, छोटी चुदंडी, नकली गहने, नकली बाल (जो अक्सर घोड़े की पूंछ या गर्दन के होते थे), हरा गोबर, छोटी-बड़ी हांड़ी-बरोल्ले। चिकनी माट्टी तैं सितारे, सांझी का मुंह, पाँव, अर हाथ बणाए जाया करदे अर ज्युकर-ए वें सूख ज्यांदे तो तैयार हो ज्याया करदा सांझी बनाण का सारा सामान|

सांझी बनाण का मुहूर्त: जिह्सा अक ऊपर बताया आस्सुज के मिन्हें की मोस के द्य्न तैं ऊपर बताये सामान गेल सांझी की नीम धरी जा सै। आजकाल तो चिपकाणे आला गूंद भी प्रयोग होण लाग-गया पर पह्ल्ड़े जमाने म्ह ताजा हरया गोबर (हरया गोबर इस कारण लिया जाया करदा अक इसमें मुह्कार नहीं आया करदी) भींत पै ला कें चिकणी माट्टी के बणाए होड़ सुतारे, मुंह, पाँ अर हाथ इस्पै ला कें, सूखण ताहीं छोड़ दिए जा सैं, क्यूँ अक गोबर भीत नैं भी सुथरे ढाळआँ पकड़ ले अर सुतारयां नैं भी। फेर सूखें पाछै सांझी नैं सजावण-सिंगारण खात्तर रंग-टूम-चुंदड़ी वगैरह लगा पूरी सिंगार दी जा सै।

सांझी के भाई के आवण का द्यन: आठ द्यन पाछै हो सै, सांझी के भाई के आण का द्य्न। सांझी कै बराबर म्ह सांझी के छोटे भाई की भी सांझी की ढाल ही छोटी सांझी घाली जा सै, जो इस बात का प्रतीक मान्या जा सै अक भाई सांझी नैं लेण अर बेबे की सुस्राड़ म्ह बेबे के आदर-मान की के जंघाह बणी सै उसका जायजा लेण बाबत दो द्य्न रूकैगा|

दशमी के द्य्न भाई गेल सांझी की ब्य्दाई: इस द्यन सांझी अर उनके भाई नैं भीतां तैं तार कें हांड़ी-बरोल्ले अर माँटा म्ह भर कें धर दिया जा सै अर सांझ के बख्त जुणसी हांडी म्ह सांझी का स्यर हो सै उस हांडी म्ह दिवा बाळ कें आस-पड़ोस की भाण-बेटी कट्ठी हो सांझी की ब्य्दाई के गीत गंदी होई जोहडां म्ह तैयराण खातर जोहडां क्यान चाल्या करदी।

उडै जोहडां पै छोरे जोहड़ काठे खड़े पाया करते, हाथ म्ह लाठी लियें अक क्यूँ सांझी की हंडियां नैं फोडन की होड़ म्ह। कह्या जा सै अक हांडी नैं जोहड़ के पार नहीं उतरण दिया करदे अर बीच म्ह ए फोड़ी जाया करदी|

भ्रान्ति: सांझी के त्युहार का बख्त दुर्गा-अष्टमी अर दशहरे गेल बैठण के कारण कई बै लोग सांझी के त्युहार नैं इन गेल्याँ जोड़ कें देखदे पाए जा सें। तो आप सब इस बात पै न्यरोळए हो कें समझ सकें सैं अक यें तीनूं न्यारे-न्यारे त्युहार सै। बस म्हारी खात्तर बड्डी बात या सै अक सांझी न्यग्र हरयाणवी त्युहार सै अर दुर्गा-अष्टमी बंगाल तैं तो दशहरा अयोध्या तैं आया त्युहार सै। दुर्गा-अष्टमी अर दशहरा तो इबे हाल के बीस-तीस साल्लां तैं-ए हरयाणे म्ह मनाये जाण लगे सें, इसतें पहल्यां उरानै ये त्युहार निह मनाये जाया करदे। दशहरे को हरयाणे म्ह पुन्ह्चाणे का सबतें बड्डा योगदान राम-लीलाओं नैं निभाया सै|


दुर्गा अष्टमी अर नवरात्री: हालाँकि दुर्गा-अष्टमी अर नवरात्री हरयाणवी त्युहार ना सै, यें बंगाल तैं आये होए सें। पर पाछले कई साल्लाँ तैं (बंगाली प्रवासियाँ के आडे चोखी संख्या म्ह आण के कारण) हरयाणे मह कई जन्गाह इनकी आच्छी मानता बणी सै। कह्या जा सै अक दुर्गा माता नैं नवरात्री नैं महिषासुर मारया था अर उसे याद म्ह यु त्युहार आये साल इसे द्य्न मनाया जा सै। हरयाणे म्ह दुर्गा माता के च्यार बड्डे मंदर बताये जा सें, जो भंभौरी आळी माता, बेरी आळी माता, गुड्गामे आळी माता अर बिलासपुर आळी माता के नाँ तैं जाणे जा सैं। इस द्य्न इन मंदरा पै मेले भरे जा सैं, माँ की पूजा करी जा सै|


दस्शहैरा: हालाँकि दशहरा म्हारा हरयाणवी त्युहार नी सै अर यु अयोध्या काय्न का त्युहार सै| अयोध्या आले राजा राम जी नैं जय्ब आपणी बीर (सती सीता जी) छुडावण ताहीं रावण पै हमला कर विजय हाय्सल करी तो ओ आस्सुज की उतरदी दशमी का ए द्य्न था।

उस द्य्न पाछै आज के द्य्न अयोध्या म्ह दश्हेरा मनाया जाण लाग्या, जो देश आजादी के बाद आळए साल्लां म्ह बड्डे स्तर पै हरयाणे काहन भी आ गया। पह्ल्य्म इस द्य्न का म्हारी काहन इतना बड्डा उत्सव ना हुआ करदा पर आजादी पाछै ज्यब यू हिन्दुवां का बड्डा त्यौहार घोषित करया गया अर इस द्य्न उत्तरी भारत म्ह सरकारी आवास धरवाया गया तब तैं लोग इसनें घणा जाणन लाग गे| अर रामलीला के मंचन, नाटक, नौटंकी भी अयोध्या तैं चाल कें आड़े कै भी मशहूर होग्ये|


महर्षि बाल्मीकि जयंती: आस्सुज की परणवास्सी के द्य्न रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि की जयंती मनाई जा सै। यू द्य्न हिन्दू समाज के दलित-जनों के लिए अत्यंत महत्व का द्य्न हो सै|


इंग्लिश कलेंडर के इस मिन्हें म्ह पड़ण आळए त्युहार:

गाँधी जयंती अर लाल बहादुर शास्त्री जयंती: दो अक्तूबर नैं भारत के दो बड्डे स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गाँधी अर लाल बहादुर शास्त्री जी (भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री) का एक-ए द्य्न जन्म-द्य्न मनाया जा सै| इस द्य्न पूरे देश म्ह सरकारी अवकाश हो सै| अर जै देशी मिन्हयां के ह्य्साब तैं देखो तो दो अक्तूबर आस्सुज म्ह ए आया करै|


लेखक: फूल कुमार मलिक (01/10/2013)


कनागताँ (श्राद) का हो सै आस्सुज का पहला पखवाड़ा:


हिन्दू धर्म की मानता के ह्य्साब तैं आस्सुज का कृष्ण पक्ष पितर-पूजा का हो सै| इन पन्द्राह द्य्नां म्ह सब आपणे-आपणे सुरग स्य्धारे होड़ पुर्ख्याँ के प्यतर पूज्या करें| बताया जा सै अक इस बख्त म्ह नया काम शरु करणा शुभ नि मान्या जाया करदा| बाहर-भीतर यानी गाम-गमिणे अर सय्गारां की आवाजाही की भी मनाही हो सै ताके खसम आपणे प्यतर पुगा दे| इस दौरान बहु-बेटी पीहर म्ह सै तो पीहर म्ह अर जै स्युसराड़ म्ह सै तो स्युसराड़ म्ह ए डयटैगी|


आस्सुज अर साहित्य:

आस्सुज की आस, फसल फळऐ ख़ास, इह्सा रंग लाइए दादा, हो ज्या हर्षोल्लास|
रंग भी सजाणे, ब्याह-वाणे भी पुगाणे, तीज-त्युहारां पै, पडै ना काळी रयात||


आस्सुज के पारय्मपरक लोकगीत:


"सांझी री":

सांझी री मांगै मड्कन जूती,
कित तैं ल्याऊं री मड्कन जूती।
म्हारे रे मोचियाँ कें तैं,
ल्याइये रे बीरा जूती॥

सांझी री मांगै हरया गोबर,
कित तैं ल्याऊं री हरया गोबर।
म्हारे रे पाळी ब्य्टोळएं गोरयां,
ल्याइये रे बीरा, हरया गोबर||

सांझी री मांगै दामण-चुंदड़ी,
कित तैं ल्याऊं री दामण-चुंदड़ी|
म्हारे रे दर्जी के भाई,
दे ज्याइये रे दामण-चुंदड़ी||

सांझी री मांगै गंठी-छैलकड़ी,
कित तैं ल्याऊं री गंठी-छैलकड़ी|
म्हारे रे सुनारां के तैं,
ल्याइये रे बीरा गंठी-छैलकड़ी॥

सांझी री मांगै चिकणी-माटी,
कित तैं ल्याऊं री चिकणी-माटी|
म्हारे रे डहर-लेटा की,
ल्याइये रे बीरा चिकणी-माटी||

सांझी री मांगै नए तीळ-ताग्गे,
कित तैं ल्याऊं री नए तीळ-ताग्गे|
म्हारे रे बाणियाँ के तैं,
पड़वाइए रे बीरा तीळ-ताग्गे||

सांझी री मांगै छैल-बैहलड़ी,
कित तैं ल्याऊं री छैल-बैहलड़ी|
म्हारे रे खात्ती के तैं,
घड़वाइए रे बीरा छैली-बैहलड़ी॥

सांझी री मांगै टिक्का-चोटी,
कित तैं ल्याऊं री टिक्का-चोटी|
म्हारी री मनियारण के तैं,
ल्याइये री भाभी टिक्का-चोटी||


गींड-खुळीया के खेल:


आज का तो बेरा नहीं अक वें-हे चाह रह-रेह सें अक नीह पर एक-दो दशक पह्ल्याँ तै गाम के गोरयां पै गाम के गोरयां के इह्से आलम होया करदे अक आस्सुज की मोस गई नहीं, च्यांदण चढ्या नहीं अक चाँद की सीळी-सीळी सीळक म्ह उननें छड़दम मचाये नीह| न्यूं हुलार उठया करदी जाणू तो उपरला भी धरती पै झुक-झुक देख्दा हो अक यू मेरा रचाया सुरग म्ह होण आळआ नाच धरती पै कित-कित माच रह्या सै|

सांझ होंदें, रोटी-टुक्के तैं निबटदें जित एक और नैं बहु-बेटी सांझी बनाण के लाहरया पड़ जांदी ओडे-ए दूसरी औड नैं गाम के गाभरू-लड़धू-लोछर ठा-ठा आपणी-आपणी खुळीया लाठी (देशी हाकी, जो अक एक सबूत बन्या जोड़ की लाकडी की बणी हों सें) ले-ले पोहंच ज्यांदे गाम के गोरयां पै अर देर रयात ताहीं हे-ले-हे-ले, ले-ल्यो-ले-ल्यो, यु आया - ओ गया की रूक्क्याँ म्ह गींडां की ग्याँठ सी गांठण के इह्से झोटे-से भड्या करदे अक कुदरत भी एक टक देख्या करदी, अर इह्सी स्यांत हो ज्याया करदी अक जाणु चाँद नैं भी कहंदी हो अक रे इबै मत जाइये म्यरे बेट्याँ के खेल इबै थमे नहीं सें|



कुम्हाराँ के कारोबार का सबतें ख़ास मिन्हा:


इस मिन्हें म्ह सांझी फोड़ण आळए (इसे द्य्न दशहरा भी पड्या करै) पराणे माट्टी के बर्तन भी फोड़ दिए जाया करदे| अक ताके कुम्हारां के आव्याँ तें काड्या होया ताजा माळ तो ब्यके-ब्यक सकै, गेल-गेल घर म्ह फूटण अर लीक होण के कगार पै आये पराणे माट्टी के बर्तन भी बदले जा सके, जिनमें अक वें बर्तन भी होया करदे जिनमें पीने का पाणी सीळआ रहणा बंद हो ज्याया करदा अर पाणी का सुवाद भी बकबका हो ज्याया करदा|

इस करकें गाम की गाळआँ दशहरे तैं आगले द्य्न ठेकरे-ए-ठेकरे भर ज्याया करदे, जाणु तो गई रयात ऐड लागी हो अक द्य्खां कूण सारया म्ह घणे भांडे फोडैगा| कई उत तो इह्से होया करदे अक छाजे-अटारियां कूददे हांडया करदे अक क्यूँ उनकै माट फोड़ण का चाह चढ्या-ए ईतणा करदा|


खेती-बाड़ी अर आस्सुज:


बाड़ियाँ कें भोह्की-फूल-टिंडे फूटण का मिन्हा: सामण-बाधुवे म्ह जो बाड़ी नुलाई-पताई गई थी उस मिहनत के निसरण का मिन्हा हो सै आस्सुज। इस टेम घनखरी बाड़ियाँ कै भोह्की फुटण लाग ज्यां सैं अर किसान-जमींदार के सपने साकार से होण लाग ज्या सैं। क्यासान घटती-बडदी भोह्कियाँ की संख्यां गेल आपणे सपने भी घटाण-बधाण लाग ज्या सै|

जीरियाँ का न्यसरणा भी इसे टेम शरू हो ज्या सै, गंडे की पोरियाँ म्ह भी म्य्ठास भरणी शुरू हो ज्या सै| किते पछेते बाजरे चुंडे जा रेह हों सें तो किते बाजरे की पूळीयाँ की पांदी लाई जा रीह हों सें|

आसुज्ज का मिन्हा तस्वीरों म


चिकणी माट्टी के बणाए होड़ रंगाँ के रंगे सुतारयाँ की बणी सांझी अर उसके भाई के न्यारे-न्यारे रूप्पाँ की झांकी - चित्र: रणबीर सिंह फौगाट

वेबसाइट पै इसतैं मिल्दे-जुल्दे लेख: Saanjhi: The folk art of young girls




जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर


विशेष: आसुज्ज के मिन्हे पै न्यडाणा हाइट्स की खोज लगातार जारी सै। म्हारी साईट के इस पद-भाग का उद्देश्य सै आसुज्ज अर हरियाणवी का जो भी मेळ-मान-मनुहार-लाग-लपेट तैं यें एक-दूसरे तैं जुड़े सें वें सारी बात कट्ठी इस भाग म्ह संजोणा। जै थाहमनैं इस भाग म्ह किसे भी हिस्से म्ह कोए कमी नजर आवै, या कोए चीज छूटी होई दिख्खै तो हाम्नें इस पते पै जरूर ईमेल करें: nidanaheights@gmail.com हाम्में थाहरे नाम की गेल वा चीज इसे भाग म्ह प्रकाश्यत करांगे|


लेखन अर सामग्री सौजन्य:
  1. रणबीर सिंह फौगाट

  2. पी. के. म्यलक
तारय्ख: 05/10/2013

छाप: न्यडाणा हाइट्स

छाप्पणिया: न्य. हा. शो. प.

ह्वाल्ला:
  • न्य. हा. सलाहकार मंडळी

हरियाणवी समूं अर उसकी लम्बेट

नारंगी मतलब न्यगर समूं, ह्यरा मतलब रळमा समूं




हरियाणवी तारय्खा के नाँ



आग्गै-बांडो
न्य. हा. - बैनर अर संदेश
“दहेज़ ना ल्यो"
यू बीर-मर्द म्ह फर्क क्यूँ ?
साग-सब्जी अर डोके तैं ले कै बर्तेवे की हर चीज इस हाथ ले अर उस हाथ दे के सौदे से हों सें तो फेर ब्याह-वाणा म यू एक तरफ़ा क्यूँ, अक बेटी आळआ बेटी भी दे अर दहेज़ भी ? आओ इस मर्द-प्रधानता अर बीरबानी गेल होरे भेदभाव नै कुँए म्ह धका द्यां| - NH
 
“बेटियां नै लीड द्यो"
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
छोरी के जन्म नै गले तैं तले ना तारणियां नै, आपणे छोरे खात्तर बहु की लालसा भी छोड़ देनी चहिये| बदेशी लुटेरे जा लिए, इब टेम आग्या अक आपनी औरतां खात्तर आपणे वैदिक युग का जमाना हट कै तार ल्याण का| - NH
 
“बदलाव नै मत थाम्मो"
समाजिक चर्चा चाल्दी रहवे!
बख्त गेल चल्लण तैं अर बदलाव गेल ढळण तैं ए पच्छोके जिन्दे रह्या करें| - NH
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