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!!!......इस वेबसाइट पर जहाँ-कहीं भी "हरियाणा" शब्द चर्चित हुआ है वह आज के आधुनिक हरियाणा के साथ-साथ दिल्ली, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड व् उत्तरी राजस्थान को इंगित करता है| क्योंकि प्राचीन व् वास्तविक हरियाणा इसी सारे क्षेत्र को मिला कर बनता है, जिसके कि १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम के बाद इस क्षेत्र को सजा स्वरूप व् खुद के व्यापारिक व् राजनैतिक हितों हेतु अंग्रेजों ने टुकड़े करके सीमन्तीय रियासतों में मिला दिए थे|........!!!
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दादा दयानंद की जुबानी
 
निडाना गाँव की कहानी, दादा श्री दयानंद कबीरपंथी की जुबानी


दादा श्री दयानंद का परिचय:


दादा श्री दयानंद कबीरपंथी (धाणक) पुत्र श्री मांगेराम, गाँव के धाणक समाज के सबसे आदरणीय वृद्ध हैं| धाणक ढूंग में जब गया तो पूछने पर उनका ही नाम मुझको बताया गया| नीचे की लिखी बातें सशब्द उनकी जुबानी रख रहा हूँ| मेरा किरदार इसमें सिर्फ उनके बोलों को शब्दों में रूपांतरण का है| दादा से यह वार्तालाप 17 अक्टूबर 2014 को हुई|



तो उनके बताये तथ्य इस प्रकार हैं:

  1. धाणक समाज की सबसे बड़ी धार्मिक मान्यता गाँव की धाणक ढूंग में "श्री लालबेग मढ़ी" है|

  2. गठवाला जाटों की निकासी बारे पूछने पर दादा ने बताया कि मलिक जाटों का निकास गढ़-गजनी का है और वहाँ से सर्वप्रथम गोहाना के पास कासंढा आके बसे|

  3. मोखरा गाँव जहां से निडाना गाँव के पुरखे आये थे वहाँ आज भी 300 बीघे मालिकी निडाना गाँव के नाम बोली जाती है और यह सरकारी दस्तावेजों में भी दर्ज है|

  4. दादा बताते हैं कि हमारे पुरखे दादा चौधरी मंगोल जी गठवाला से मोखरा गाँव में एक आदमी बिगड़ गया था यानी उनके हाथों कत्ल हो गया था तो वो अपने परिवार व् संगी-साथियों संग वहाँ से यहां चले आये थे|

  5. दादा आगे बताते हैं कि हमारे पुरखों के यहां आके खेड़ा बसाने से पहले किनाना रियासत के मुस्लिम रांघड़ यानी हिन्दू धर्म से परिवर्तित मुस्लिम राजपूत रहते थे, जिनके यहां से विस्थापन पे (लड़ाई में) जाटों ने अपनी सहयोगी जातियां जैसे कि धाणक, इनके साथ अपना खेड़ा यहां बसाया|

  6. गाँव की ऐतिहासिक लड़ाइयों (हरियाणा में दो तरह की लड़ाइयां होती थी, एक "धाड़" द्वारा स्थानीय स्तर पर डाली गई और एक "खापों" द्वारा शासकों व् विदेशी आक्रान्ताओं के खिलाफ बोली हुई) में गाँव की धाणक व् तेल्ली जातियों का अहम किरदार बताते हुए उन्होंने बताया कि यह दोनों जातियां ऐसी होती थी जिनका गाँव को "धाड़" जैसे हमलों से बचाने में जाटों के साथ सबसे अहम किरदार होता था और कई लड़ाइयां तो ऐसी रही जो इन दोनों जातियों ने ही लड़ी और गाँव को बचाया|

  7. एक दो लड़ाइयों का जिक्र करते हुए दादा आगे कहते हैं कि

    • एक बार राहड़ा के रांघड़ों ने ब्यलोणा रांघड़ के नेतृत्व में गाँव पर हमला बोल दिया तो निडाना के "गोहरा" ने इस लड़ाई को जीता| वो बताते हैं कि उस जमाने में पांच रूपये की बहुत कीमत होती थी और सम्मान रूप दिया जाता था| "गोहरा" जी को पांच रूपये और एक चादरा सम्मान रूप मिला था|

    • एक और धाड़ का जिक्र करते हुए दादा बताते हैं कि जाटों से दादा चौधरी गुलाब जी ने एक बार अकेले अठारह लोगों को उनके गाँव में जा के काटा था; जिस गाँव में काटा था उस गाँव का नाम गोपनीय रखने की कहते हुए कहते हैं कि आज भी उस गाँव से हमारे रिश्ते नहीं होते|

  8. पैर का छाज निकालने की रीत: दादा बताते हैं कि ऐसी लड़ाइयों के लिए पहलवान व् लड़ाके तैयार करने हेतु गाँव के जाट-जमींदार लोग "पैर का छाज" निकाला करते थे यानी हर फसल कटाई के मौके पर, अनाज के ढेर से हर किसान के यहां से एक छाज इन पहलवानों और लड़ाकों के नाम पर जाता था; जो कि मुख्यत: धाणक और तेल्ली जाति से होते थे|

  9. चमारवा डेरा: गाँव की अन्य जातियों बारे बताते हुए दादा कहते हैं कि मंगोल वाले जोहड़ के साथ वाले जोहड़ पर बहुत पुराना चमारवा डेरा होता था, जिसको गाँव की चमार जाति खासतौर पर मानती थी; परन्तु वक्त के हालातों के चलते वो डेरा उजड़ गया| आज वहाँ पर "देवी की छोटी कमरानुमा मढ़ी" है जो कि इसी डेरे का हिस्सा होती थी और आज भी उसी से जुडी हुई बताई जाती है|

  10. अस्थल बोहर के महंत ने छोड़ा था निडाना को सांड: दादा बताते हैं कि हमारे गाँव पे जो "मोडडों-साधुओं द्वारा सांड छोड़ने की बात है" यह तब शुरू हुई थी जब अस्थल बोहर के महंत गाँव में दान-दक्षिणा मांगने आये थे तो उनके लाख प्रयासों पर भी गाँव उनकी बातों में नहीं आया, तो उन्होंने कहाँ कि मैं इतने बड़े डेरे का महंत हूँ मुझे एक रुपया ही दे के विदा कर दो| तो गाँव ने उनको एक रुपया भी नहीं दिया था और तब जाते-जाते वो महंत कह गए कि आज के बाद साधू समाज की तरफ से यह गाँव सांड छुड़ा हुआ बोल के जाता हूँ; क्योंकि यहां सभी अपने आध्यात्म से इतने संतुष्ट हैं कि इनको हमारी जरूरत ही नहीं| और साध-संगत को संदेश सा दे गए कि किते भी जाईयो पर दक्षिणा की आस में निडाना ना आईयो|

  11. गाँव के दानवीरों के बारे पूछने पर दादा बताते हैं कि दादा चौधरी जागर सिंह से बड़ा दानवीर नहीं हुआ आज तक निडाने में| बताते हैं 1936 से गाँव के खेतों बना पुराना विद्यालय उन्हीं दादा की दान में दी हुई जमीन पे बना है| और जिन 5.5 एकड़ जमीन को सुभाषिनी के किल्ले कह के बोला जाता है वो भी दादा की ही "खानपुर यूनिवर्सिटी (उस वक्त गुरुकुल)" को दान दी हुई है| सुभाषिनी उस वक्त गुरुकुल की चांसलर हुआ करती थी और जमीन गुरुकुल के नाम होने की रजिस्ट्री सुभाषिनी के नाम से ही हुई थी इसलिए आज इनको सुभाषिनी वाले किल्ले बोला जाता है| माननीय भगत फूल सिंह मलिक से प्रेरित हो रामपाल शास्त्री को दादा जागर ने यह जमीन दान दी थी और आज भी इस जमीन की आवक सीधी खानपुर, गोहाना यूनिवर्सिटी में जाती है|

    तो इस पर मैंने दादा के साथ चुटकी ली कि दादा ऐसा नहीं कि निडाना दान देता ही नहीं परन्तु हाँ साधू-मोडडों को नहीं देता| समाजसुधारकों और शिक्षाविदों को तो देता है| तो इस पर दादा बोहें खिलाते हुए कहते हैं कि रै और रै बेटा, यू देख ना शिक्षा के नाम पर तो अपने गाँव के स्वामी रतनदेव को गाँव ने झट से 17 कमरों की पाठशाला दान कर दी| जबकि वहीं दूसरी और गाँव का ही एक साधू (जो कि कहीं दूर के गाँव में एक डेरे का महंत बताया गया) पंद्रह रोज बैठा रहा गाँव में, मंदिर बनाने की जिद्द पकड़ के, पर किसी ने द्व्वन्नी नहीं दी| इस पर मैंने कहा दादा अब वो वाले वक्त कहाँ, अब तो डर है कहीं ऐसा भी ना हो जाए|

  12. गाँव से निकले गाँवों बारे पूछने पर दादा बताते हैं कि ललितखेड़ा-निडानी-गतौली-शामलो-रामकली यह सब गाँव हमारे गाँव से ही गए हुए हैं| गतौली वालों को तो आज भी "लादु वाले" बोलते हैं| प्राचीन में निडाना गाँव लजवाना तपा के तहत आता था|

  13. किस्मत कैसे किसी को धनी बना देती है इस पर दादा ने पड़ाना गाँव के धाणक झुन्डा जी का जिक्र किया| उन्होंने बताया कि नबीये के अकाल जो कि छप्पन के अकाल से पहले पड़ा था उस वक्त झुन्डा दादा जाट-जमींदारों के यहां काम करता था और जाट-जमींदार उनके पैरों (खलिहानों) में पड़ी बाजरे की पूली दादा झुन्डा को दे देते थे| इस तरह नब्बे के अकाल से ठीक पहले दादा झुन्डा ने पांच जगह पुलियों के पाळ (पांदी यानी संग्रह) लगाए थे और होनी का होना हुआ कि तभी नबिया का अकाल पड़ा और अधिकतर जमींदारों के यहां मवेशियों के लिए चारे तक के लाले पड़ गए थे तो तब उन्होंने दादा झुन्डा से रुपया पूली के हिसाब से पुलियां खरीदी और दादा झुन्डा इस तरह अमीर हो गए| दादा आगे बताते हैं उस अकाल ने कई जमींदारों-साहूकारों को कंगाल कर दिया और उनको दादा झुन्डा के यहां से ब्याज पे पैसा भी उठाना पड़ा था|

  14. दादा निरंकार की मान्यता बारे पूछने पर दादा बताते हैं कि सिद्ध पुरुष दादा मोलूराम जी का डेरा है यह| दादा मोलूराम जी कुंगड़ गाँव के थे और ऐसे सिद्ध हुए कि ब्राह्मणों को छोड़ लगभग हर जाति उनको पूजती है|

  15. गाँव में मोर-ध्वज वाली हवेलियों बारे पूछने पर दादा हवा पुत्र दादा बोन्ना जी का नाम सर्वप्रथम बताया गया कि उन्होंने सर्वप्रथम गाँव में हवेली पर मोरनी चढ़ाई थी| मोर, मोरध्वज और मोरनी की फिरकी को जाट अपनी शान मानते हैं और इसका ऐतिहासिक जुड़ाव भी जाट कौम से बताते हैं|

  16. दादा बड़ा बीर बारे पूछने पर दादा बताते हैं कि पहले यहां रांघड़ों के "माड़दे पीर" हुआ करते थे, जिसको जब मोखरा से दादा मंगोल आये तो उन्होंने तोड़ के इसमें अपना खेड़ा स्थापित किया|

  17. तीन-एक दशक पहले सरकार द्वारा कबीरपंथी समाज को आवंटित की गई पौने दो-दो एकड़ जमीन के इस्तेमाल व् इससे धाणक समाज को हुए फायदे बारे दादा बताते हैं कि खेती और जमीन तो जाट ही शाहम (यानी मैनेज) सके है, यहां तो छब्बीस परिवारों में से आज सिर्फ एक परिवार ने ही जमीन रखी है, बाकी सबने बेच दी|

  18. धाणकों वाली परस (चौपाल) बारे पूछने पर बताते हैं कि यह चौपाल ताऊ देवीलाल के जमाने में आज से लगभग साढ़े-तीन दशक पहले बनी थी; जब ताऊ देवीलाल ने हरिजन चौपालें बनवाने का नेक-कार्य किया था| उससे पहले चमारों के यहां तो चौपालें होती थी पर धाणकों के यहां तो कहीं कोई इक्की-दुक्की ही|



विशेषत: गाँव के धाणक समाज बारे:


गाँव के धाणक समाज से बने अफसरों बारे पूछने पर दादा बताते हैं कि श्री मुनीराम पुत्र श्री मांगेराम, हरयाणा बिजली बोर्ड से एक्शन रिटायर हुए हैं और आजकल हिसार विद्युत नगर में रहते हैं| उनका लड़का पंकज एमबीबीएस डॉक्टर है| धाणक समाज से ही सुमेर सिंह पुत्र रामेश्वर पीएनबी बैंक में मैनेजर है| जसबीर पुत्र इन्दर सिंह नांगल डैम पर जेई हैं| होशियार सिंह पुत्र ज्ञानचंद रिटायर्ड लेफ्टिनेंट हैं|

खेलो में कोई नाम पूछने पर बताते हैं कि पुरानों में तो जाटों व् ब्राह्मणों के यहां ज्यादा हुए हैं, धाणकों में तो "धाड़" के लड़ाके जरूर हुए; हाँ शेपरी पुत्र श्री लहरी का नाम आता है पुराने पहलवानों में| लेकिन हाँ नए बच्चों में खेलों के प्रति आकर्षण है और कई लड़के काफी मेहनत कर रहे हैं| हो सकता है कि तू अगली बार आये तो कोई नाम इधर से भी खेलों में सुनने को मिल जाए|

धाणक बिरादरी में ब्याह-शादी की रीतों बारे पूछने पर दादा बताते हैं कि रीतियों के नाम पर सब कुछ वही अनुसरण किया जाता है जो जाट करते हैं| ब्याह के वक्त तीन गोत्र छोड़ते हैं| गाँव की छत्तीस बिरादरी की बेटी सबकी बेटी है| धाणकों के गोत्रों बारे पूछने पर बताते हैं कि गाँव में धाणकों का खेड़े का गोत्र "खटक" है, उसके बाद मोरवाल, खुंडिया, मुन्दडिया, नगुरिया (नागर) गोत्री धाणक आये| दादा ने बताया कि यह सब गोत्र ध्याणी की औलादें यानी बेटी की औलादें हैं|

विशेष: गाँव के इतिहास खोज का कार्य निरंतर प्रगति पर है, जैसे-जैसे नई जानकारियाँ मिलेंगी यहाँ अद्यतन की जाती रहेंगी|


जय दादा नगर खेड़ा बड़ा बीर  


सशब्द रूपांतरण: पी. के. मलिक

प्रकाशन: निडाना हाइट्स

प्रथम संस्करण: 02/11/2014

प्रकाशक: नि. हा. शो. प.

साझा-कीजिये
 
निडाना खेत-कीट पाठशाला

25. जिला स्तरीय खेत दिवस का आयोजन



निडानी में संपन हुई २०१३ की खेत-कीट-पाठशाला
जानकारी पट्टल - पूछ-ताछ
पूछताछ जानकारी पट्टल: उपलब्ध करवाता है भारतीय और हरियाणा राज्य प्रणाली और सार्वजनिक पाठ्यक्रम और अर्थव्यवस्था की सेवाओं बारे सार्वजनिक प्रायोगिक वेबलिंक्स नि. हा. नियम व् शर्तें लागू
लोक पूछताछ
अर्थ संबंधी उपयोगात्मक लिंक्स
पैसा और जिंदगी
अर्थव्यवस्था और मुद्रा दर
शेयर और विनिमय
नि. हा. - बैनर एवं संदेश
“दहेज़ ना लें”
यह लिंग असमानता क्यों?
मानव सब्जी और पशु से लेकर रोज-मर्रा की वस्तु भी एक हाथ ले एक हाथ दे के नियम से लेता-देता है फिर शादियों में यह एक तरफ़ा क्यों और वो भी दोहरा, बेटी वाला बेटी भी दे और दहेज़ भी? आइये इस पुरुष प्रधानता और नारी भेदभाव को तिलांजली दें| - NH
 
“लाडो को लीड दें”
कन्या-भ्रूण हत्या ख़त्म हो!
कन्या के जन्म को नहीं स्वीकारने वाले को अपने पुत्र के लिए दुल्हन की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए| आक्रान्ता जा चुके हैं, आइये! अपनी औरतों के लिए अपने वैदिक काल का स्वर्णिम युग वापिस लायें| - NH
 
“परिवर्तन चला-चले”
चर्चा का चलन चलता रहे!
समय के साथ चलने और परिवर्तन के अनुरूप ढलने से ही सभ्यताएं कायम रहती हैं| - NH
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